कभी जोर से हँसता था दिल ख़ुशी में ।
आज तनहा छुप कर रोने की जगह ढूंढ़ता है।
हवा ए हिज़रत बहुत ज़ोर से चली लेकिन
चिराग जलते रहे यादो के दरीचों से
अफ़ीम,गाजां,चरस,शराब हराम हैं समझ में आता है,
तुम्हरी जुल्फ़,नज़र,लब और बदन का क्या करें जालिम।
✍दिल साफ़ करके मुलाक़ात की आदत डालो*,
धूल हटती है तो आईने भी चमक उठते हैं...!!*❤
कोई नहीं याद करता वफ़ा करने वालो को*
*मेरी मानों बेवफा हो जाओ जमाना याद रखेगा*❤
काश बचपन में महोब्बत के टीके लगे होते,
आज मर्ज न तुमको होता और हम भी बचे होते !!
Supurde khak kar dala teri ankho ki masti ne
Hazaro saal jee lete agar tere deedar na hota
*बहुत मुश्किल नहीं हैं ज़िंदगी की सच्चाई समझना*
जिस तराज़ू पर दूसरों को तौलते हैं उस पर कभी ख़ुद बैठ के देखिये।*
मुझे सिर्फ वक़्त गुज़ारने के लिए
ना चाहा कर,मैं भी इंसान हूँ,
मुझे भी तकलीफ़ होती है
.
मैक़दे जाती सड़क पर
वह गुलाब बेचता है !!
सिर्फ, वाइज़ के हाथ
वह शराब बेचता है!!
_________________नजम
जरूरत हो तभी जलाओ
अपने आप को ...
उजालों में चिरागों की
अहमियत नहीं होती ...
मैकदा... शराबखाना
वाइज़.. नसीहत करने वाला
अजीब बेदर्द रिवाज है इस बेरहम दुनियां के
“साहीब”….
यहां अक्सर चिराग जलाने वाला ही,
उसे बुझाता है
*मोहब्बत उसे भी बहुत है मुझसे....*
*जिंदगी सारी इस वहम ने ले ली.....*
पढ़ रहा था मुहब्बत की किताबो को,
पहले पन्ने में इश्क़ दिखा बाकी में बेवफ़ाई.!!
*एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का इंतज़ार ये इश्क़ होता है साहब*
*कव्वालियों में थिरकने को तुम इश्क़ समझ बैठे हो साहब*।।।।
मेरा कत्ल करने की उसकी साजीश तो देखो,
करीब से गुज़री तो चेहरे से पर्दा हटा लिया...✍
आँधियों ने बहुत बढाया हौसला धूल का, दो बूंद बारिश ने औकात बता दी!*
*
जब एक रोटी के चार टुकङे हो और खाने वाले पांच हो तब मुझे भूख नही है ऐसा कहने वाला कौन है सिर्फ "माँ"*
*ज़िंदा रहने का..कुछ ऐसा 'अन्दाज़' रखो..!!*
*जो तुमको ना समझे..उन्हें 'नज़रंदाज' रखो..!*
आज मेरे लफ्जों की तबियत ठीक नहीं है दोस्तों..!!
आज आप...अपने पसंद की कोई शायरी ही सुना दो..!!
अगर हमें अपने इल्म पे गुरूर है तो ,,
हमारी ज़हालत के लिये ये क़ाफी है !!
अय हवा उस से ये केहना के सलामत है
अभी ,,
तेरे फूलों को किताबों में छूपाने वाला !!
दिल की ज़ीद थी के शिकाय़त नहीं करनी ,,
वरना
तुम से तो वो गिले हैं के ---- बस रहने दो !!
मैं अपनी कलम से जंग का एलान करने वाला हूँ ,,
ज़ालिम के आगे ज़ुर्रत-ए- इनकार लिखने वाला हूँ !!
मुख़्तसर सा गुरूर भी ज़रूरी है, जीने के लिए;
ज्यादा झुक के मिलो तो दुनिया, पीठ को पायदान बना लेती है!
सच तो ये कि अभी दिल को सुकूँ है लेकिन
अपने आवारा ख़यालात से जी डरता है
एक मोहब्बत ही पे मौक़ूफ़ नही है 'ताबिश'
कुछ बड़े फैसले हो जाते हैं नादानी में
इस शहर में चलती है हवा और तरह की
जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की
सौ बार मरना चाहा निगाहों में डूब कर .!!
वो निगाह झुका लेते हैं हमें मरने नहीं देते.
सच्ची मोहब्बत मिलना भी तकदीर होती है,
बहुत कम लोगों के हाथों में ये लकीर होती है।
किस कदर मासूम था लहजा उनका ....*
*धीरे से 'जान' कह के बेजान कर दिया....*
चांद को देना है जवाब मुझे..!!
तुम मेरे लिए आज सवर जाओ....
जब दिल में कोई हड्डी ही नहीं है,
तो ये कमबख्त टूट कैसे जाता है !!
मुस्कुराहट, तबस्सुम, हँसी, कहकहे...
सब के सब खो गए, और हम बड़े हो गए...
आज तनहा छुप कर रोने की जगह ढूंढ़ता है।
हवा ए हिज़रत बहुत ज़ोर से चली लेकिन
चिराग जलते रहे यादो के दरीचों से
अफ़ीम,गाजां,चरस,शराब हराम हैं समझ में आता है,
तुम्हरी जुल्फ़,नज़र,लब और बदन का क्या करें जालिम।
✍दिल साफ़ करके मुलाक़ात की आदत डालो*,
धूल हटती है तो आईने भी चमक उठते हैं...!!*❤
कोई नहीं याद करता वफ़ा करने वालो को*
*मेरी मानों बेवफा हो जाओ जमाना याद रखेगा*❤
काश बचपन में महोब्बत के टीके लगे होते,
आज मर्ज न तुमको होता और हम भी बचे होते !!
Supurde khak kar dala teri ankho ki masti ne
Hazaro saal jee lete agar tere deedar na hota
*बहुत मुश्किल नहीं हैं ज़िंदगी की सच्चाई समझना*
जिस तराज़ू पर दूसरों को तौलते हैं उस पर कभी ख़ुद बैठ के देखिये।*
मुझे सिर्फ वक़्त गुज़ारने के लिए
ना चाहा कर,मैं भी इंसान हूँ,
मुझे भी तकलीफ़ होती है
.
मैक़दे जाती सड़क पर
वह गुलाब बेचता है !!
सिर्फ, वाइज़ के हाथ
वह शराब बेचता है!!
_________________नजम
जरूरत हो तभी जलाओ
अपने आप को ...
उजालों में चिरागों की
अहमियत नहीं होती ...
मैकदा... शराबखाना
वाइज़.. नसीहत करने वाला
अजीब बेदर्द रिवाज है इस बेरहम दुनियां के
“साहीब”….
यहां अक्सर चिराग जलाने वाला ही,
उसे बुझाता है
*मोहब्बत उसे भी बहुत है मुझसे....*
*जिंदगी सारी इस वहम ने ले ली.....*
पढ़ रहा था मुहब्बत की किताबो को,
पहले पन्ने में इश्क़ दिखा बाकी में बेवफ़ाई.!!
*एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का इंतज़ार ये इश्क़ होता है साहब*
*कव्वालियों में थिरकने को तुम इश्क़ समझ बैठे हो साहब*।।।।
मेरा कत्ल करने की उसकी साजीश तो देखो,
करीब से गुज़री तो चेहरे से पर्दा हटा लिया...✍
आँधियों ने बहुत बढाया हौसला धूल का, दो बूंद बारिश ने औकात बता दी!*
*
जब एक रोटी के चार टुकङे हो और खाने वाले पांच हो तब मुझे भूख नही है ऐसा कहने वाला कौन है सिर्फ "माँ"*
*ज़िंदा रहने का..कुछ ऐसा 'अन्दाज़' रखो..!!*
*जो तुमको ना समझे..उन्हें 'नज़रंदाज' रखो..!*
आज मेरे लफ्जों की तबियत ठीक नहीं है दोस्तों..!!
आज आप...अपने पसंद की कोई शायरी ही सुना दो..!!
अगर हमें अपने इल्म पे गुरूर है तो ,,
हमारी ज़हालत के लिये ये क़ाफी है !!
अय हवा उस से ये केहना के सलामत है
अभी ,,
तेरे फूलों को किताबों में छूपाने वाला !!
दिल की ज़ीद थी के शिकाय़त नहीं करनी ,,
वरना
तुम से तो वो गिले हैं के ---- बस रहने दो !!
मैं अपनी कलम से जंग का एलान करने वाला हूँ ,,
ज़ालिम के आगे ज़ुर्रत-ए- इनकार लिखने वाला हूँ !!
मुख़्तसर सा गुरूर भी ज़रूरी है, जीने के लिए;
ज्यादा झुक के मिलो तो दुनिया, पीठ को पायदान बना लेती है!
सच तो ये कि अभी दिल को सुकूँ है लेकिन
अपने आवारा ख़यालात से जी डरता है
एक मोहब्बत ही पे मौक़ूफ़ नही है 'ताबिश'
कुछ बड़े फैसले हो जाते हैं नादानी में
इस शहर में चलती है हवा और तरह की
जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की
सौ बार मरना चाहा निगाहों में डूब कर .!!
वो निगाह झुका लेते हैं हमें मरने नहीं देते.
सच्ची मोहब्बत मिलना भी तकदीर होती है,
बहुत कम लोगों के हाथों में ये लकीर होती है।
किस कदर मासूम था लहजा उनका ....*
*धीरे से 'जान' कह के बेजान कर दिया....*
चांद को देना है जवाब मुझे..!!
तुम मेरे लिए आज सवर जाओ....
जब दिल में कोई हड्डी ही नहीं है,
तो ये कमबख्त टूट कैसे जाता है !!
मुस्कुराहट, तबस्सुम, हँसी, कहकहे...
सब के सब खो गए, और हम बड़े हो गए...
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ReplyDeletebahut shandar
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