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29 Jan 2017

मुनव्वर राना

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँ
रोज़ उंगली मेरी तेज़ाब में आ जाती है
दिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही नहीं
सोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती है
रात भर जागते रहने का सिला है शायद
तेरी तस्वीर-सी महताब* में आ जाती है
एक कमरे में बसर करता है सारा कुनबा
सारी दुनिया दिले- बेताब में आ जाती है
ज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा* ओढ़े हुए
कूचा – ए – रेशमो -किमख़्वाब में आ जाती है
दुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखें
सारी मिट्टी मिरे तालाब में आ जाती है
महताब – चाँद
रिदा- चादर
मुनव्वर राना 
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28 Jan 2017

KHUBSHURAT LINE

KHUBSHURAT line

जिसे अंजाम तक लाना, न हो मुमकिन ..

उसे ऐक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा है ....


"लुटा चुका हूँ बहुत कुछ अपनी जिंदगी मेँ
 यारो  मेरे वो ज़ज्बात तो ना लूटो जो लिखकर बयाँ करता हूँ !


मिन्नत-ए-चारा-साज़  कौन  करे  , दर्द  जब  जाँ-नवाज़  हो  जाए  ,


शाम होते ही सुस्त हो गया आजादी का जूनुन......

कमबख्त जरुर थक गया होगा दिखावे से....


मेरे अशआरों से ख़फ़ा हैं, कुछ दोस्त मेरे,

दुखती रगों पे, उँगलियाँ तो नहीं रख बैठा !!


कल रात, दर्द भी जाते जाते कह गया मुझसे,

रहम क्यूँ नहीं मांगता तु


दीदार तो एक ख़्वाब ठहरा, बात भी बेशक़ न हो,

बस एक उसकी ख़ैरियत का, पैग़ाम मिल जाया करे !!
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24 Jan 2017

Hindi Shayari


• खाली जेबे लिऐ, निकलो तो सही बाजार में,

  वहम दूर हो जाएगा, इज़्ज़त कमाने का !!

• ले आओ ना टूटी छतरी

  मोहब्बत की बारिश में आधा आधा भिगेंगे

• मेरी बदतमीजियां तो जग ज़ाहिर है, लेकिन,

  शरीफो के शराफत के, निशां क्यों नही मिलते !!

• ख़ुदकुशी हराम है साहब.

  मेरी मानो तो इश्क़ कर लो.

• तोड़ना चाहो जो वादे, तो सबब मत ढूंढो,

  बेजुबानी भी बहुत होगी, मुकरने के लिए !!

• पहले इश्क़ को, आग होने दीजिए;
  फिर दिल को, राख होने दीजिए!

  तब जाकर पकेगी, बेपनाह मोहब्बत;
  जो भी हो रहा, बेहिसाब होने दीजिए!

  सजाएं मुकर्रर करना, इत्मिनान से;
  मगर पहले कोई, गुनाह होने दीजिए!

  मैं भूला नहीं, बस थोड़ा थक गया था;
  लौट आऊंगा घर, शाम होने दीजिए!

  चाँद के दीदार की चाहत, दिन में जगी है;
  आयेगा नज़र वो, रात होने दीजिए!

  जो सरिताएं, सूख गयी हैं इंतज़ार में;
  वो भी भरेंगी, बस बरसात होने दीजिए!

  नासमझ, पागल, आवारा, लापरवाह हैं जो;
  संभल जाएंगे वो भी, एहसास होने दीजिए!

 •रुख मस्जिद का किया था ....,
  उसे भुलाने की *नीयत* से,

  नमाज जो काबिल-ए-क़बूल* लगी,
  तो
 *दुआ में फिर उसी को* मांग बैठे..."
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22 Jan 2017

SHAYRI HI SHAYRI

अंजान अपने आप से वो शख़्स रह गया,

जिसने उम्र गुज़ार दी औरों की फ़िक्र में.....


बिखर कर पत्तियाँ फूलों की, ये ऐलान करती है,

हमे हँसता ही पाओगें, तबाही के आलम में ..!!


घर अंदर ही अंदर, टूट जाते है,

मकान खड़े रहते हैं, बेशर्मो की तरह ..!


नाम तेरा जब किसी ओर के साथ जब जुड़ेगा,

सही मायने में अपनी मुकम्मल जुदाई होगी ..!!










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